प्रदर्शन विधि के चरण Step of Pradarshan vidhi
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दोस्तों इस लेख के माध्यम से आज प्रदर्शन विधि के साथ ही प्रदर्शन विधि के गुण प्रदर्शन विधि के दोष प्रदर्शन विधि की विशेषताओं प्रदर्शन विधि के जनक कौन है, प्रदर्शन विधि के चरण के बारे में जानेंगे तो आइए दोस्तों पढ़ते हैं यह लेख प्रयोग प्रदर्शन विधि क्या है:-
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प्रदर्शन विधि क्या है Pradarshan Vidhi kya hai
प्रदर्शन विधि उच्च कक्षाओं Higher Classes के साथ स्कूल में शिक्षण के लिए एक उपयुक्त विधि है। इस विधि के अंतर्गत शिक्षक के सामने मेज पर सभी प्रकार के उपकरण रखे हुए होते हैं और शिक्षक अपना पाठय विषय पढ़ाने का कार्य शुरू करता है, तथा तत्ससंबंधी आवश्यक प्रयोग करके स्वयं दिखाया भी जाता है।
विद्यार्थी अपने स्थान पर बैठे रहते हैं और अध्यापक द्वारा प्रदर्शन की गई सामग्री अध्यापक द्वारा किये गए प्रयोगों को देखते रहते हैं और अंत में निरीक्षण के आधार पर निष्कर्ष भी निकालते हैं। इस पद्धति का प्रयोग तो बहुत दिनों से होना शुरू हो गया था,
किंतु इस पद्धति को प्रमुख रूप से विज्ञान शिक्षण की मुख्य विधि के रूप में हाल में ही स्वीकार किया गया है। प्रदर्शन विधि, जिसे प्रयोग प्रदर्शन विधि के नाम से भी जाना जाता है, व्याख्यान विधि से पूरी तरह भिन्न होती है, क्योंकि व्याख्यान विधि में
अध्यापक केवल मौखिक शिक्षण देता है, जबकि प्रदर्शन विधि मौखिक शिक्षण के साथ ही उपकरणों की सहायता से पाठक पुस्तकों की बातें स्पष्ट करने के लिए अध्यापक प्रयोग भी करता है।
व्याख्यान विधि के अंतर्गत छात्र निष्क्रिय रहता है, अर्थात मौन बनकर अध्यापक के व्याख्यानों को अध्यापक द्वारा शिक्षण पाठ्यवस्तु को आत्मसात करने की कोशिश करता है,
किंतु प्रदर्शन विधि में विद्यार्थी भी सक्रिय हो जाते हैं, इसीलिए व्याख्यान विधि कॉलेज अर्थात उच्च शिक्षा के छात्रों के लिए उपयुक्त होती है किंतु प्रयोग प्रदर्शन विधि उच्च शिक्षा के साथ ही स्कूल के बच्चों के लिए भी उत्तम मानी जाती है।
प्रदर्शन विधि के जनक कौन हैं who was father of Pradarshan Vidhi
प्रदर्शन विधि के जनक सीमैन ए. नैप है जिनका पूरा नाम सीमैन असाहेल नैप जिनका जन्म न्यूयॉर्क में हुआ था। इन्होंने किसी के क्षेत्र में काफी अनुसंधान किया तथा शिक्षा के क्षेत्र में प्रदर्शन विधि का प्रतिपादन किया।
प्रदर्शन विधि के चरण Step of Pradarshan vidhi
प्रदर्शन विधि के मुख्य चरण निम्न प्रकार से हैं:-
- तैयारी करना :- प्रदर्शन विधि का प्रथम चरण तैयारी करना होता है, जिस भी विषय वस्तु को हमें किसी के समक्ष प्रस्तुत करना है, उसकी हमें पहले से ही तैयारी करनी होती है जो प्रदर्शन विधि का पहला चरण होता है।
- परिचय देना:- प्रदर्शन विधि का दूसरा चरण उस विषय वस्तु का परिचय देना होता है, जिसका हम प्रदर्शन करने वाले हैं अर्थात उस विषय वस्तु का इस भाषा शैली में वर्णन करना, कि जो प्रदर्शन के लिए व्यक्ति बैठे हैं उस विषय व्यक्ति के प्रति आकर्षित हो।
- प्रदर्शन करना:- प्रदर्शन विधि का यह तीसरा तथा बहुत ही उपयुक्त माना जाने वाला चरण होता है, जिसके अंतर्गत जो भी विषय वस्तु हमने तैयार की है, उस विषय वस्तु को अपने विभिन्न कौशलों के अनुसार लोगों के सामने प्रदर्शित करना होता है।
- बातचीत करना:- प्रदर्शन के पश्चात लोगों की बीच में बातचीत करना उनके प्रश्न आदि का उत्तर देना लोगों की सक्रिय भागीदारी और जुड़ाव को स्पष्ट करना होता है।
- निष्कर्ष:- प्रदर्शन विधि का यह अंतिम चरण होता है जिसमें निष्कर्ष के द्वारा मुख्य बिंदुओं को समझना सीखने के मकसद को मजबूत करना होता है।
प्रदर्शन विधि के कार्य Pradarshan vidhi ke karya
- प्रयोग प्रदर्शन के द्वारा छात्रों में सीखने का उपयोगी अनुभव देना संभव हो जाता है, जिसके फलस्वरूप छात्रों की निरीक्षण शक्ति का विकास तो होता ही है साथ में उनमें विचार व्यक्त करने की शक्ति भी उत्पन्न होने लगती है।
- इस विधि के अंतर्गत छात्रों के सामने कोई एक समस्या दी जाती है, जिसके कारण छात्र सोचने के लिए मजबूर हो जाते हैं, अर्थात सोचने की क्रिया का प्रारंभ होता है।
- प्रदर्शन विधि के द्वारा किसी कठिन तथा गूंढ़ विचार का सरल बनाना बहुत ही आसान हो जाता है, जबकि किसी समस्या को वस्तु के रूप में भी बदला जा सकता है।
- इस विधि के द्वारा पाठ को पूरा या फिर आंशिक रूप में दोहराना आसान हो जाता है।
- प्रदर्शन विधि के द्वारा शिक्षक प्रयोगशाला के कार्य को भिन्न-भिन्न संबंधित प्रयोग से स्पष्ट किया जा सकता है।
- प्रयोग प्रदर्शन विधि के द्वारा शिक्षक कठिन तथा भयानक प्रयोगों को छात्रों के सामने करके दिखाता है, जिन्हे छात्र स्वयं करने में सक्षम नहीं होते हैं।
प्रदर्शन विधि की विशेषताएँ Pradarshan vidhi ki visheshtayen
- एक अच्छा प्रदर्शन तब माना जाता है, जिसके अंतर्गत वस्तु का प्रत्येक भाग संपूर्ण कक्षा के छात्रों को भलीभांति दिखाई देता हो।
- अच्छे प्रदर्शन में वस्तु तथा उसकी पृष्ठभूमि के संबंध में ऐसे हो जिससे वस्तु अलग दिखलाइ दे।
- अच्छे प्रदर्शन में केवल एक मुख्य विचार एक समय प्रदर्शित किया जा सकता है, बहुत अधिक विचार एक समय में देने से छात्र के मन में गलत विचार पैदा होने लगते हैं।
- एक अच्छा प्रदर्शन वह प्रदर्शन माना जाता है, जिसके अंतर्गत वस्तु स्पष्ट प्रभावशाली और विश्वसनीय होती है। इसके लिए शिक्षक द्वारा स्वयं पहले प्रयोगशाला परीक्षण किया जाना बहुत ही आवश्यक होता है, जिससे उसको दोबारा करने में किसी प्रकार की कठिनाई ना आए।
- प्रदर्शन विधि में प्रयोग होने वाली वस्तु में पूरी तरह से वितरित हो एक ही समय में सभी वस्तुओं का प्रदर्शन ना किया जाए ऐसी स्थिति में अच्छा प्रदर्शन माना जाता है।
- जहाँ तक हो सके प्रदर्शन के परिणाम छात्रों को पहले से पता नहीं होने चाहिए, बल्कि छात्र प्रदर्शन के निष्कर्ष के अंत में स्वयं उसको निकालें।
- प्रदर्शन में छात्रों के द्वारा कुछ ना कुछ सहयोग अवश्य होना चाहिए जिससे छात्र भी सक्रिय Active बने रहे।
प्रदर्शन पद्धति के गुण Properties of Pradarshan method
- प्रदर्शन पद्धति प्रयोगों का प्रत्यक्ष ज्ञान करने के लिए सबसे सस्ती Cheap और उपयुक्त Usable पद्धति मानी जाती है।
- प्रयोग प्रदर्शन पद्धति के द्वारा समय की तो बचत होती ही है, साथ में बालकों और छात्रों में स्थाई ज्ञान का अर्जन हो जाता है।
- सभी विद्यार्थी एक ही प्रयोग एवं एक ही प्रक्रिया को देखने का अवसर पाते हैं, जिससे वह उनको ठीक प्रकार से आत्मसात कर लेते हैं।
- इस पद्धति में अध्यापक की योग्यता अधिक होती है इसीलिए यह पद्धति अधिक उपयुक्त भी मानी जाती है, जिससे विद्यार्थियों को एक बार में ही अधिक सीखने को मिलता है।
- प्रदर्शन पद्धति के द्वारा जो भी सोपान होते हैं, उन सभी सोपानो की व्याख्या अध्यापक करता है। इस प्रकार से प्रत्येक छात्र संपूर्ण अर्थात एक ही रूप में देखता है और उससे एक ही अर्थ ग्रहण करने का कार्य करता है।
प्रदर्शन विधि के दोष Drawbacks of Pradarshan Method
- इस पद्धति में प्रयोगशाला पद्धति में उपयोग होने वाले अनेक लाभ जैसे कि यंत्रों तथा उपकरणों का प्रयोग करना, सिद्धांत निरूपण करने के अवसर आदि विद्यार्थियों को नहीं मिल पाते हैं।
- इस विधि का प्रयोग इस प्रकार से किया जाता है, कि विद्यार्थी प्रदर्शन के प्रत्येक भाग को समान रूप से देखें किंतु वास्तव में ऐसा हो नहीं पाता है।
- यह विधि एक खर्चीली विधि होती है, जो सभी विद्यालयों में प्रयुक्त नहीं हो पाती है।
- इस पद्धति का दुरुपयोग दो प्रकार से हो सकता है, प्रयोग पद्धति से भलीभांति परिचित ना होने एवं उससे प्राप्त आत्मविश्वास के अभाव के कारण यह प्रयोग करने में हिचकिचाहट अथवा प्रयोग में छात्रों का उचित सहयोग ना प्राप्त कर सके।
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