मुस्लिम शिक्षा के उद्देश्य Aims of Muslim Education
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दोस्तों यहाँ पर आप मुस्लिम शिक्षा के उद्देश्य, मुस्लिम शिक्षा की विशेषताएँ आदि पड़ेंगे, तो आइये शुरू करते है, यह लेख मुस्लिम शिक्षा के उद्देश्य:-
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मुस्लिम शिक्षा के उद्देश्य Aims of Muslim Education
मध्यकालीन युग को मुस्लिम युग के नाम से जाना जाता है, जिसमें विभिन्न मुस्लिम शासको ने शासन किया और उनके शासन व्यवस्था के अंतर्गत शिक्षा की व्यवस्था उनके अनुसार भिन्न-भिन्न प्रकार से की गई थी।
यहाँ पर समस्त मुस्लिम शासको के द्वारा जो कुछ महत्वपूर्ण शिक्षा के उद्देश्य थे उनको समझाया गया है।
मुस्लिम शिक्षा के उद्देश्य Aims of Muslim Education
- मुसलमान में ज्ञान का प्रसार :- मध्यकालीन युग में बहुत से मुसलमान अशिक्षित थे, जिन्हें पढ़ना लिखना तथा अपनी मातृभाषा का भी अच्छे से ज्ञान नहीं था, इसलिए मुस्लिम शिक्षा का सबसे पहला उद्देश्य मुसलमान में ज्ञान का प्रसार करना उनको शिक्षित करना था, जिससे वह अपने जीवन स्तर में सुधार कर सके।
- इस्लाम धर्म का प्रचार :- मुस्लिम शिक्षा का उद्देश्य था मुसलमान में धर्म का प्रचार तथा भारत में इस्लाम धर्म का प्रचार प्रसार करना, क्योंकि बहुत से जो गैर मुसलमान थे उन्हें इस्लाम धर्म के बारे में जानकारी नहीं थी, इसलिए मुस्लिम शिक्षा का उद्देश्य था, इस्लाम धर्म का प्रचार प्रसार तथा भारतीय मुसलमान द्वारा इस्लाम धर्म की नीति नियम सिद्धांत आदि को आत्मार्पित करना।
- शिक्षा द्वारा सांसारिक उन्नति :- मुसलमान शासक मानते थे, कि शिक्षा के द्वारा ही सांसारिक उन्नति अर्थात सभी प्रकार की उन्नति सक्षम होती है, इसलिए मुसलमान को शिक्षित करना बहुत ही आवश्यक है। अतः मुसलमान शासको ने भारतीय मुसलमान को शिक्षित करने के लिए तथा उन्हें सांसारिक उन्नति के लिए शिक्षित करना महत्वपूर्ण समझा।
- शासन को दृढ़ बनाना :- मुसलमानकाल में जो भी लोग शासन के अधिकारी होते थे, वह मुस्लिम वर्ग के लोग अधिक होते थे, इसलिए मुसलमान काल में शासन को अधिक मजबूत बनाने की स्थिति में मुसलमान को शिक्षित कर उनमें राज्य की गरिमा गौरव आदि जगाना था।
- इस्लाम के कानून का प्रसार :- मुस्लिम शिक्षा के माध्यम से इस्लाम के कानून का प्रसार प्रचार करना था, ताकि सब लोग इस्लाम के कानून नियम सिद्धांत को समझ सके जान सके।
मुस्लिम शिक्षा की विशेषताएँ Charecteristics of Muslim education
मुस्लिम शिक्षा की प्रमुख विशेषताएँ निम्न प्रकार से हैं:-
- शिक्षा का संरक्षण:- मुस्लिम शिक्षा को राज्य का संरक्षण प्राप्त होता था अर्थात जो मुस्लिम शासक होते थे, वह शिक्षा में रुचि लेते थे और उन्होंने अपने राज्य के विभिन्न भागों में मदरसा मकतब और पुस्तकालयों की स्थापना करवाई तथा दोनों हाथों से आर्थिक सहायता भी इन शिक्षा संस्थानों को प्रदान की।
- शिक्षा में व्यापकता का अभाव :- मुस्लिम काल में शिक्षा का व्यापकता का अभाव था, मुस्लिम शिक्षण संस्थानों में जो शिक्षा प्रदान की जाती थी, उस पर धार्मिक कट्टरता की मोहर लगी हुई थी, इसीलिए हिंदू जनता को इस किसी भी प्रकार का लाभ प्राप्त नहीं होता था। मुस्लिम काल की जो शिक्षा व्यवस्था थी वह उच्च नगरों में अधिक थी इसलिए उच्च वर्ग और मध्यम वर्ग के बालकों के लिए ही यह शिक्षा उपलब्ध हो सकी।
- पाठयक्रम की विशेषताएँ :- मध्यकाल में पाठ्यक्रम धर्म प्रधान हुआ करता था, किंतु अकबर के शासनकाल में इसमें जीवन उपयोगी विषय भी शामिल किए गए। यहाँ पर प्राथमिक शिक्षा का माध्यम फारसी और उच्च शिक्षा का माध्यम अरबी होता था, जबकि अकबर और औरंगजेब के समय में शिक्षा का माध्यम मातृभाषा उर्दू बनाने के लिए प्रयास किया गया। पाठ्यक्रम अत्यधिक शास्त्रीय था बाद में औरंगजेब के शासनकाल में कुछ व्यापारिक विषय भी शामिल किए गए।
- शिक्षा का स्थान गुरु शिष्य संबंध :- मध्यकाल में जो शिक्षण संस्थाएं थी, उनको मकतब मदरसा दरगाह आदि के नाम से जाना जाता था। यहाँ पर धार्मिक शिक्षा के साथ ही व्यावसायिक शिक्षा भी प्रदान की जाती थी, किंतु यहां पर गुरु शिष्य संबंध प्राचीन काल के गुरु शिष्य संबंध से बहुत ही बेकार हो चला था, क्योंकि इस समय में कठोर शारीरिक दंड देने की प्रथा गुरुओं के द्वारा प्रचलित हो गई थी, जबकि छात्र भी भोग विलास का जीवन व्यतीत करने में लगे थे, जिससे गुरु शिष्य संबंध अधिक उत्तम नहीं रहे।
- निशुल्क शिक्षा व्यवस्था:- मुस्लिम काल में जो शिक्षा व्यवस्था थी, वह निशुल्क थी यहां पर बालको से छात्र-छात्राओं से किसी भी प्रकार का शुल्क नहीं लिया जाता था क्योंकि इसका भार राज्य तथा समाज के धनी लोगो पर होता था।
- स्त्री शिक्षा सैनिक शिक्षा :- मुस्लिम काल में स्त्री शिक्षा का महत्व बहुत ही काम था, यहाँ पर उच्च वर्ग की स्त्रियां घर पर ही शिक्षा ग्रहण कर लेती थी, किंतु उन्हें किसी भी शिक्षण संस्था में प्रवेश की अनुमति नहीं थी, जबकि यहां पर सैनिक शिक्षा को महत्व दिया जाता था, जो राज्य के अमीर घराने के लोग हुआ करते थे, उनके बालक तथा राज्य के शहजादे सैनिक शिक्षा प्राप्त करते थे।
- परीक्षाएँ तथा उपाधियाँ :- मुस्लिम काल में परीक्षाएँ बिल्कुल अलग हुआ करती थी, यहां पर शिक्षक को जब पूर्ण विश्वास हो जाता था, कि बालक ने समय का सदुपयोग किया है और उसने वांछित ज्ञान प्राप्त कर लिया है, तब उसको दूसरी कक्षा में प्रवेश की अनुमति मिलती थी। वही मुस्लिम काल में उपाधियाँ देने का भी प्रचलन था। तर्कशास्त्र और दर्शनशास्त्र की शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्र को फाजिल कहा जाता था, जबकि धर्म की शिक्षा प्राप्त करने वाले बालक को आलिम कहा जाता था और वही साहित्य की शिक्षा प्राप्त करने वाले को काबिल की उपाधि से सम्मानित किया जाता था।
दोस्तों यहाँ पर आपने मुस्लिम शिक्षा के उद्देश्य (Aims of Muslim Education) मुस्लिम शिक्षा की विशेषताएँ, आदि कई महत्वपूर्ण तथ्य पड़े आशा करता हुँ, आपको यह लेख अच्छा लगा होगा।
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