घनानंद का साहित्यिक परिचय Ghananand ka sahityik parichay
हैलो नमस्कार दोस्तों आपका बहुत-बहुत स्वागत है, हमारे इस लेख घनानंद का जीवन परिचय (Ghananand ka sahityik parichay) में। दोस्तों इस लेख के माध्यम से आज आप घनानंद का साहित्यिक परिचय, घनानंद का साहित्यिक जीवन परिचय जान पाएंगे। दोस्तों यह लेख कक्षा 10 कक्षा 11 और कक्षा 12 में अवश्य पूछा जाता है।
यहाँ से आप घनानंद का भाव पक्ष घनानंद का कला पक्ष के साथ ही साहित्य में स्थान और घनानंद की रचनाएं लिखने का आईडिया ले सकते हैं, तो आइये दोस्तों शुरू करते हैं आज का यह लेख घनानंद का जीवन परिचय घनानंद का साहित्यिक परिचय है:-
इसे भी पढ़े :- महादेवी वर्मा का जीवन परिचय
घनानंद का जन्म कब और कहां हुआ था Birth and Birth place of Ghananand
घनानंद का साहित्यिक परिचय :- हिंदी साहित्य के प्रेम और सौंदर्य का काल रीतिकाल होता है और रीतिकाल तीन प्रकार से विभाजित है, जिसमें रीतिमुक्त काव्य धारा के कवि घनानंद सबसे प्रमुख और विख्यात है, जिनका जन्म 1658 ईस्वी में दिल्ली के आसपास हुआ था। घनानंद के बारे में इतिहासकारों को अधिक जानकारी नहीं मिलती है, किंतु ऐसा कहा जाता है,
कि घनानंद और आनंदघन नाम के दो रचनाकार थे और दोनों ही एक थे, किंतु कुछ विद्वान दोनों ही रचनाकारों को अलग-अलग मानते हैं। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने घनानंद को रीतिकाल की मुक्त काव्यधारा का एक श्रेष्ठ कवि माना है, क्योंकि घनानंद को साहित्य के साथ ही संगीत में दोनों में ही निपुणता प्राप्त थी। उन्होंने मुगल महाराजाओं के यहां पर आश्रय प्राप्त किया मोहम्मद शाह रंगीला के यहां घनानंद मीर मुंशी के पद पर आसीन थे और यहाँ पर उनको एक राज दरबार की नर्तकी सुजान से प्रेम हो गया था। घनानंद की मृत्यु 1739 में उस समय हो गई थी जब नादिर शाह ने भारत पर आक्रमण किया और कत्लेआम किया था।
घनानंद का काव्य सौन्दर्य Ghananand ka Kavya Saundarya
घनानंद प्रेम और विरह वेदना के महान कवि थे, क्योंकि उनकी रचनाएं साहित्य प्रेम के साथ ही स्त्री प्रेम और वेदना से व्यथित सौन्दर्य से उत्प्रोत हैं। घनानंद अपनी प्रेयसी सुजान के कारण विरह वेदना से भरे हुए थे, क्योंकि उनको सुजान प्राप्त नहीं हो पाई थी, जबकि राज दरबार से निकलने के बाद उन्होंने भक्ति के मार्ग को अपनाया और भगवान श्रीकृष्ण को आराध्य मानकर उनके स्नेह और प्रेम में भक्ति के गोते लगाने लगे अर्थात भगवान श्रीकृष्ण से संबंधित विभिन्न प्रकार की रचनाओं को उन्होंने रचित किया तथा उनका हृदय स्पर्शी वेदना का चित्र साक्षात उनकी रचनाओं में दिखाई देता है।
घनानंद की रचनाएँ Composition of Ghananand
घनानंद ने अपने जीवन में हिंदी साहित्य को कई अमूल्य रचनाएं प्रदान की हैं, जिनमें से मुक्तक सबसे प्रमुख रूप में है, जबकि उनकी बहुत सी रचनाओं को भारतेंदु हरिश्चंद्र ने सुंदरी तिलक पत्रिका में भी प्रकाशित किया है। घनानंद के द्वारा रचित सुजान शतक 1870 में इसके लगभग 119 कवित्त प्रकाशित किए गए थे, जबकि जगन्नाथ दास रत्नाकर ने 1897 में घनानंद द्वारा रचित वियोग बेली और विरह लीला नागरी प्रचारिणी में प्रकाशित की थी। रचनाकार घनानंद की प्रमुख रचनाओं में कवित्त संग्रह, सुजान विनोद, सुजान हित, वियोग बेली आनंदघन, जु इश्क लता, वृंदावन सत, जमुना जल आदि का सबसे प्रमुख स्थान है।
घनानंद का भाव पक्ष Ghananand ka Bhav Paksh
घनानंद प्रेम के प्यासे और विरह वेदना में व्यथित रीतिकाल के महान कवि हैं, इसलिए उनके हृदय से प्रेम सौंदर्य और विरह की वेदना ही निकलती है। उन्होंने रीतिकाल को श्रृंगार के दोनों सयोग वियोग के अमूल्य पक्षो के द्वारा इतने अनुपम रचनाएँ दी हैं जो हर एक व्यक्ति को भावों से भर देती है। घनानंद ने अपने काव्य में सबसे प्रमुख स्थान श्रृंगार रस को दिया है। वह स्वयं प्रेयसी सुजान के व्यवहार से प्रेम की विरह वेदना से व्यथित, किंतु उन्होंने सबसे अधिक अपने काव्य में वियोग श्रृंगार को महत्वपूर्ण स्थान दिया, जबकि उनका प्रेम और विरह वर्णन इस प्रकार का हृदय स्पर्शी और ममस्पर्शी था, कि वह जीवंत प्रतीत मालूम होता है।
घनानंद का कला पक्ष Ghananand ka Kala paksha
घनानंद मुगल दरबार में एक नृतकी सुजान के प्रेम में व्याकुल रहते थे, किंतु वह विरह वेदना से उस समय भर गए जब उनको मुगल दरबार से अपमानित करके निकाल दिया गया और वह सीधे वृंदावन पहुंचे और साधु संतों की संगति करके ज्ञान अर्जित किया। उन्होंने अपने प्रेम और विरह वेदना का बड़ा ही अनुपम वर्णन किया है।उनकी रचनाएँ हिंदी साहित्य में श्रेष्ठ रचनाएँ हैं, जिनमें अधिकतर ब्रज भाषा का प्रयोग हुआ है, उन्होंने अपनी रचनाओं में लाक्षणिक व्यंजना तथा प्रचुर व्याकरण संबंध भाषा का प्रयोग किया है। उनकी रचनाओं में अनुप्रास, रूपक अलंकार का बड़े ही सामंजस्य के साथ प्रयोग किया है, जबकि छंद शैली और श्रृंगार रस को बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान उन्होंने अपने काव्य में दिया है।
घनानंद का साहित्य में स्थान Ghananand ka Sahitya Mai Sthan
घनानंद प्रेम के पीर कहे जाने वाले रीतिकाल के रीतिमुक्त काव्य धारा के एक महान कवि हैं। उन्होंने अपने पदों में सुजान का इस प्रकार से वर्णन किया है, कि इसका आध्यात्मीकरण ही हो गया है। सुजान का उनका प्रेयसी होना बहुत ही उपयुक्त लगता है। सुजान को श्रृंगार पक्ष में नायक और भक्ति पक्ष में कृष्ण मान लेना ही ठीक होगा ऐसे महान कवि रीतिकाल में हमेशा के लिए अमर और विख्यात हो गए हैं।
दोस्तों यहाँ पर आपने घनानंद का साहित्यिक परिचय (Ghananand ka sahityik parichay) घनानंद का जीवन परिचय pdf, घनानंद का साहित्यिक परिचय pdf घनानंद का जीवन परिचय पढ़ा। आशा करता हुँ, आपको यह लेख अच्छा लगा होगा।
इसे भी पढ़े :-
एक टिप्पणी भेजें