राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 National Education Policy 1968
राष्ट्रीय शिक्षा नीति जो शिक्षा की एक व्यवस्था है और समय-समय पर भारत सरकार के साथ मिलकर शिक्षा विभाग तथा इससे सम्बंधित कई गवर्नमेंट बॉडीज इसको बनाती है और लागू करती है
ताकि शिक्षा के क्षेत्र में सुधार हो सके और वह जीवनपयोगी बन सके ऐसी ही भारत की सबसे पहली राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 (NEP 1968) है, जिसमें राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 के उद्देश्य जिसे निम्न तरीके से समझ सकते है:-
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राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 क्या है What is National Education Policy 1968
शिक्षा एक ऐसा आयाम है, जो मनुष्य को मनुष्य कहलाने के लायक बनाती हैं, अर्थात यह मनुष्य में बुद्धि कौशल तथा कई ऐसे गुणों को विकसित करती है, जिससे मनुष्य का वास्तविक अर्थ सिद्ध होता है, इसीलिए शिक्षा प्रत्येक मनुष्य के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हैं और भारत सहित सारे विश्व में प्राचीनतम काल से शिक्षा का महत्वपूर्ण स्थान रहा है।
शिक्षा के क्षेत्र में दिन-प्रतिदिन विकास होने के पश्चात 1964 में निर्मित कोठारी आयोग (Kothari Commission) को शिक्षा के सभी पक्षो की जांच करने के लिए नियुक्त किया गया और कोठारी आयोग ने शिक्षा के सभी महत्वपूर्ण पक्षो का यह अध्ययन किया और अपनी रिपोर्ट भारत सरकार को 29 जून 1966 को प्रस्तुत कर दी। इसके पश्चात लगभग 9 महीने के बाद भारत सरकार ने संसद सदस्यों की एक समिति बनाई
और 5 अप्रैल 1967 को इस समिति को तीन प्रकार के मुख्य कार्य सौंपे गए जिनमें से पहला कार्य था कोठारी आयोग के सुझावों पर विचार करना, दूसरा सुझाव था राष्ट्रीय शिक्षा नीति का प्रारूप तैयार करना और तीसरा सुझाव था प्राथमिकताओं के आधार पर उसका क्रियान्वयन करना और रूपरेखा तैयार करना।
संसदीय समिति ने उक्त सुझाव का गंभीरता से अध्ययन किया और अपना अभिमत सरकार को प्रस्तुत किया। संसद सदस्यों के द्वारा बनाई गई समिति ने सबसे पहले राष्ट्रीय एकता को मजबूत बनाने पर बल दिया इस समिति के द्वारा भाषा नीति, कार्य अनुभव, चरित्र निर्माण, विज्ञान शिक्षा शोध और शैक्षिक अवसरों की समानता पर भी स्पष्ट विचार दिए गए
इसके अलावा इस समिति के द्वारा केंद्र और राज्य सरकारों के शैक्षिक उत्तरदायित्व भी निश्चित किए गए और प्राथमिकताओं के आधार पर भावी कार्यक्रम की रूपरेखा सरकार के समक्ष 1968 में प्रस्तुत कर दी गई।
संसद (Parliament) में इस विषय पर गंभीरता से विचार विमर्श हुआ और लंबी बहस के पश्चात 24 जुलाई 1968 को भारत सरकार ने इसको विधिवत रूप से लागू कर दिया इस प्रकार यह भारत की पहली राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 बनी।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 के मूल तत्व Basic Elements of National Education Policy 1968
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 की सिफारिशें:- कोठारी आयोग के सदस्यों द्वारा प्रस्तुत किए गए सभी महत्वपूर्ण पक्षों पर आधारित रिपोर्ट को राष्ट्रीय शिक्षा नीति का प्रारूप दिया गया और यह 9 प्रश्नों में प्रस्तुत हुई थी जिसके द्वारा प्रमुख मूल तत्व निम्न प्रकार से स्पष्ट किए गए हैं:-
- शिक्षा राष्ट्रीय महत्व का विषय :- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 के द्वारा यह पक्ष मजबूती से लागू किया गया, कि शिक्षा राष्ट्रीय महत्व का विषय है और शिक्षा के द्वारा ही लोकतंत्र को अधिक मजबूत बनाया जा सकता है। शिक्षा के द्वारा ही स्वतंत्रता, समानता, न्याय समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता जैसे मूल्यों का मनुष्य में विकास किया जा सकता है और राष्ट्रीय एकता को मजबूत बनाकर राष्ट्र के विकास में योगदान दिया जा सकता है।
- राज्य और केंद्र सरकारों का दायित्व शिक्षा की व्यवस्था करना :- भारत एक लोकतांत्रिक गणतंत्र देश है और यहां पर कुछ विषय तो केंद्र सरकार के अधीन हैं, जबकि कुछ विषय राज्य सरकार के अधीन हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी विषय हैं, जिन पर नियम और कानून राज्य सरकार और केंद्र सरकार दोनों ही बना सकती हैं, जिसमें से एक विषय ऐसा ही है जिसको हम शिक्षा (Education) कहते हैं और इस नीति के द्वारा यह स्पष्ट किया गया है, कि शिक्षा की व्यवस्था करना राज्य सरकार और केंद्र सरकार दोनों का ही उत्तरदायित्व होगा। केंद्र सरकार राष्ट्रीय शिक्षा नीति का निर्धारण करना केंद्रीय विश्वविद्यालयों और राष्ट्रीय महत्व की शिक्षा संस्थाओं का प्रबंध करना उच्च स्तर की विज्ञान और तकनीकी शिक्षा और अनुसंधान के स्तर मानक निश्चित करना विदेशों में शैक्षिक और सांस्कृतिक समझौते करना आदि महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व निभाएगी, जबकि राज्य सरकार केंद्रीय शिक्षा नीति के अनुसार राज्य स्तर पर शिक्षा को नियमित करेगी इसके लिए वित्त की व्यवस्था करेगी और शैक्षिक प्रशासनिक ढांचे पर नियंत्रण और निर्माण के साथ शिक्षा की गुणवत्तापूर्ण बनाने का प्रयास करेगी।
- केंद्रीय बजट का 6% शिक्षा पर व्यय :- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 में शिक्षा को राष्ट्रीय महत्व का विषय बना दिया गया, इसलिए केंद्रीय बजट से 6% शिक्षा पर व्यव करने का निश्चय किया गया है, इससे पहले शिक्षा पर केंद्रीय बजट का केवल 2.9% व्यव किया जाता था अब अधिक शिक्षा के क्षेत्र में साधन और शिक्षा को लाभप्रद तथा उपयोगी बनाई जा सकेगी।
- देश में 10+2+3 शिक्षा संरचना लागू :- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 के अंतर्गत संपूर्ण देश में 10+2+3 शिक्षा संरचना को लागू किया जाएगा सबसे पहले 10 वर्षीय शिक्षा के लिए एक मुख्य आधारभूत पाठ्यक्रम होगा इसके पश्चात +2 स्तर पर विशेष पाठ्यक्रम निश्चित की जाएगी, जबकि इसमें 50% छात्रों को व्यवसायिक शिक्षा की तरफ मोड़ने का प्रयास किया जाएगा इसके पश्चात +3 स्नातक स्तर के पाठ्यक्रम चरण होगा प्रत्येक विश्वविद्यालय को अपने-अपने पाठ्यक्रम में सुधार तथा उसको लाभप्रद बनाने की छूट होगी।
- अनिवार्य और निशुल्क प्राथमिक शिक्षा:- भारतीय संविधान में अनुच्छेद 45 के अनुसार वर्णित किया गया है, कि 6 से 14 आयु वर्ग के बच्चों के लिए निशुल्क और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था की जाएगी और यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 के द्वारा विशेष तौर पर लागू होगी इसमें पहले 5 वर्ष के अंदर 6 से 11 आयु वर्ग के बच्चों को और उसके पश्चात अगले 5 वर्षों में 11 से 14 आयु वर्ग के बच्चों की उच्च प्राथमिक शिक्षा की अनिवार्य निशुल्क व्यवस्था कर दी जाएगी।
- माध्यमिक शिक्षा का विस्तार :- शिक्षा नीति के अंतर्गत जिन क्षेत्रों में माध्यमिक शिक्षा की मांग है, वहाँ पर माध्यमिक शिक्षा की व्यवस्था की जाएगी और आने वाले समय में 10 वर्षीय शिक्षा को अनिवार्य और निशुल्क कर दिया जाएगा। माध्यमिक स्तर पर बच्चों को राष्ट्र का इतिहास और संविधान के विभिन्न आवश्यक तत्वों की जानकारी दी जाएगी और व्यवसायिक शिक्षा की भी व्यवस्था की जाएगी।
- माध्यमिक स्तर पर त्रिभाषा सूत्र :- प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में ही शिक्षा दी जाएगी, जबकि उच्च प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा के साथ ही किसी अन्य भारतीय भाषा अथवा अंग्रेजी का अध्ययन अनिवार्य होगा और माध्यमिक स्तर पर किसी एक और राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय महत्व की भाषा का अध्ययन करना अनिवार्य होगा।
- भारतीय भाषाओं का विकास:- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 के अंतर्गत यह भी प्रावधान रखा गया, कि राष्ट्रीय महत्व कि जो भी भाषाएं हैं उनके शिक्षा की व्यवस्था होगी और उनका समुचित विकास करने के लिए प्रयास भी किया जाएगा। राष्ट्रभाषा हिंदी का प्रचार प्रसार किया जाएगा और संस्कृत की शिक्षा के लिए भी विशेष कदम उठाए जाएंगे।
- प्रतिभावान छात्रों की पहचान:- राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इस पक्ष पर भी ध्यान दिया गया, कि जो भी प्रतिभावान बालक हैं, उनको प्राथमिक स्तर के बाद अलग से उचित अवसर प्राप्त होंगे और उन अवसरों का लाभ प्राप्त करके वह अपना विकास तथा देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देगा।
- विश्वविद्यालय शिक्षा का प्रसार और उन्नयन :- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 के अंतर्गत उच्च स्तर पर छात्रों की बढ़ती हुई संख्या के आधार पर महाविद्यालयों और सायं कालीन कक्षाओं की व्यवस्था होगी। विश्वविद्यालयों में अंशकालीन और पत्राचार पाठ्यक्रम विकसित किए जाएंगे, विश्वविद्यालय के प्रसार के लिए स्वायत्तता प्रदान की जाएगी कुलपति पद पर प्रशासनिक पद पर शिक्षाविदों को नियुक्त किया जाएगा। प्रथम स्नातक पाठ्यक्रमों में इंटर पास छात्रों को प्रवेश मिलेगा और स्नातकोत्तर में केवल योग्य स्नातक पास छात्रों का प्रवेश लिया जाएगा।
- कृषि व्यवसाय तकनीकी और इंजीनियरिंग की शिक्षा :- राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अंतर्गत कृषि व्यवसाय तकनीकी और इंजीनियरिंग की शिक्षा पर विशेष बल दिया जाएगा कृषि विज्ञान के लिए सामान्य पॉलिटेक्निक विद्यालय निर्माण होंगे, जबकि उच्च पद के लिए कुछ विश्वविद्यालयों में कृषि संकाय की भी स्थापना होगी प्रत्येक राज्य में कम से कम एक कृषि विश्वविद्यालय स्थापित होगा जो कृषि के क्षेत्र में अनुसंधान कार्य करेगा तथा कृषि के क्षेत्र में प्रचार प्रसार के साथ ही विकास तथा छात्रों को शैक्षिक अवसर प्रदान करेगा। तकनीकी और व्यवसायिक शिक्षा के लिए भी औद्योगिक संस्थानों के अनुसार विद्यालय और महाविद्यालय विकसित किए जाएंगे।
- विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान कार्य:- भारत में आर्थिक विकास की गति तीव्र करने के लिए तथा भारतीय समाज को आधुनिकीकरण से जोड़ने के लिए प्रथम 10 वर्षीय छात्र शिक्षण में विज्ञान और गणित की शिक्षा को अनिवार्य कर दिया जाएगा। विश्वविद्यालयों में विज्ञान की उच्च शिक्षा और विज्ञान के क्षेत्र में शोध कार्य को प्राथमिकता मिलेगी, जबकि राष्ट्र के वैज्ञानिकों को शोध संस्थानों को सहायता राशि आर्थिक सहायता राशि भी प्राप्त की जाएगी।
- परीक्षा प्रणाली में सुधार:- राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अंतर्गत आंतरिक और सतत मूल्यांकन की योजना निर्मित की जाएगी, जबकि बाह्य परीक्षाओं के महत्व को कम किया जाएगा। माध्यमिक स्तर पर कक्षा 10 के बाद पहली सार्वजनिक परीक्षा होगी, जबकि किसी भी स्तर की परीक्षा को विश्वसनीय और वैध बनाया जाएगा, परीक्षा परिणामों में बाह्य और आंतरिक मूल्यांकन के प्राप्तांक अलग-अलग दिए जाएंगे और श्रेणी के स्थान पर ग्रेड दिए जाएंगे।
- शिक्षकों का स्तर और शिक्षक प्रशिक्षण :- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 के द्वारा इस बात पर भी जोर दिया गया, कि शिक्षा व्यवसाय की ओर नए और योग्य युवकों को आकर्षित करने के लिए शिक्षकों के वेतनमान उनके वेतन में वृद्धि की जाएगी और पद बढ़ाए जाएंगे, उनकी सेवा और शर्तों को आकर्षक बनाया जाएगा। प्रत्येक स्तर के सरकारी और गैर सरकारी शिक्षकों के लिए राष्ट्रीय वेतनमान निश्चित कर दिए, जाएंगे इसके अलावा समान सेवा शर्त निश्चित होगी। सभी शिक्षकों के लिए 3 सूत्री लाभ योजना g.p.f. बीमा और पेंशन लागू की जाएगी। शिक्षकों के संगठनों को भी मान्यता प्रदान की जाएगी, जबकि शिक्षकों को राजनीति में भाग लेने तथा चुनाव लड़ने की स्वतंत्रता प्रदान की जाएगी। इसके अलावा शिक्षण को प्रभावशाली बनाने के लिए विशेष शिक्षक प्रशिक्षण विद्यालय महाविद्यालय खोले जाएंगे।
- छात्र कल्याण योजनाएँ तथा खेलकूद :- छात्रों को शिक्षा के प्रति आकर्षित करने के लिए विभिन्न प्रकार की छात्र कल्याण योजनाएँ निर्मित की जाएगी, जबकि महाविद्यालय और विश्वविद्यालयों में कम पैसों में जलपान ग्रहों की व्यवस्था होगी। छात्रों के लिए छात्रावासों का निर्माण होगा और प्रत्येक स्तर पर छात्रवृत्ति की व्यवस्था होगी। शिक्षा के सभी स्तर पर स्वास्थ्य लाभ के लिए खेलकूद की उत्तम व्यवस्था की जाएगी, जबकि अच्छे खिलाड़ियों को प्रोत्साहन भी मिलेगा।
- शैक्षिक अवसरों की समानता:- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 के अंतर्गत शैक्षिक अवसरों की समानता की भी बात कही है, अर्थात देश के सभी बच्चों को जाति,धर्म, लिंग,स्थान आदि के आधार पर शिक्षा से वंचित नहीं किया जाएगा। सभी को समान शैक्षिक अवसर प्राप्त होंगे और इसकी पूर्ति के लिए समस्त बालकों की पहुंच के अंदर ही दूरी पर प्राथमिक स्कूल निर्मित किए जाएंगे, बालिकाओं के लिए तथा पिछड़ी अनुसूचित जाति और जनजातियों के लिए अलग से विशेष विद्यालयों की भी विशेष शिक्षा की भी व्यवस्था होगी। पिछड़े बच्चों के लिए भी अलग से शिक्षा की व्यवस्था होगी शारीरिक रूप से दृष्टिबाधित तथा विकलांग और मानसिक विकलांग बच्चों के लिए भी अलग से विद्यालय स्थापित किए जाएंगे।
- प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम :- शत-प्रतिशत साक्षरता प्राप्त करने के लिए तथा शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम को भी बढ़ावा दिया जाएगा। व्यापारिक और औद्योगिक संस्थानों में कार्य करने वाले व्यक्तियों को शिक्षा प्राप्त करने के अवसर प्राप्त होंगे, जबकि शिक्षक और छात्र राष्ट्रीय सेवा कार्य के अंतर्गत साक्षरता आंदोलन में भाग लेंगे, विश्वविद्यालयों में भी विस्तार सेवा केंद्रों की स्थापना होगी और प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रमों को एक व्यक्ति के साथ प्रदान की जाएगी।
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