विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग के सुझाव University education commission ke sujhav
हैलो नमस्कार दोस्तों आपका बहुत - बहुत स्वागत है इस लेख विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग 1948-49 (University education commission 1948-49) में। दोस्तों यहाँ पर आप विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग के सुझाव, विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग का गठन, विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग के अध्यक्ष के साथ सदस्य और विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग की सिफारिशें पड़ेंगे। तो आइये शुरू करते है यह लेख विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग के सुझाव:-
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विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग क्या है What is University education commission
बात उस समय की थी जब हमारा भारत देश 1947 में आजाद हुआ था इसके बाद से ही देश के हर एक जगह से स्वतंत्र देश के हर एक कोने से एक ही आवाज उठने लगी वह थी भारत में जो लोग रह रहे थे उनके महत्वपूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति करना और जिनमें से एक मुख्य रूप शिक्षा का था। देश के आजाद होने के बाद यह अनुभव किया गया, किस तरह विकास के लिए शिक्षा ज्यादातर उच्च शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण योगदान निभाती है, इसलिए स्वतंत्र भारत में उच्च शिक्षा पर 1948 में एक आयोग की नियुक्ति की गई जिसे विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग कहा गया और इस आयोग के अध्यक्ष डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन थे, जबकि सदस्यों की बात करें तो विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग में सदस्यों में डॉक्टर ताराचंद, डॉक्टर जाकिर हुसैन, डॉक्टर लक्ष्मण स्वामी मुदलियार के साथ डॉक्टर मेघनाथ साहा जैसे दिग्गज विद्वान थे, जबकि इस आयोग में दो अमेरिकी विद्वान के साथ ही एक अंग्रेज विद्वान को भी सदस्य के रूप में शामिल किया गया था। इस आयोग ने बड़ी तत्परता से कार्य समाप्त करके 1949 में अपना प्रतिवेदन दिया और आयोग ने उपकुलपतियों, रीडरो और प्रोफेसर के साथ प्रिंसिपल आदि विश्वविद्यालय संबद्ध वर्गों के प्रतिनिधित्व आदि से विचार विमर्श करना शुरू कर दिया इस प्रकार से विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग की स्थापना हुई और शिक्षा के क्षेत्र में अपना कार्य बंद शुरू कर दिया।
विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग के सुझाव Recommendations of University Education Commission
- विश्वविद्यालय शिक्षा के उद्देश्य :- विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग के द्वारा विश्वविद्यालय के शिक्षा के उद्देश्य पर कई पहलुओं पर चर्चा की गई और सुझाव दिए गए जैसे की शिक्षा द्वारा राजनीति शासन व्यवस्थाएं व्यापार आदि क्षेत्रों में नेतृत्व कर सकने वाले योग्य विद्यार्थी तैयार हो, विश्वविद्यालय में संस्कृति के मूल्यांकन एवं पुन:संगठन समानता स्वतंत्रता एवं न्याय पर आधारित नए समाज की रचना में विद्यार्थी योगदान दे सकें, विश्वविद्यालय में पूरी तरीके से मानसिक विकास पर बोल दिया जाए, विश्वविद्यालय में उच्चतम मूल्य में विश्वास निर्माण करने के लिए छात्रों को प्रेरित किया जाए, छात्रों को आत्मज्ञान देने की भी विश्वविद्यालय स्तर पर कोशिश होगी, देश की संस्कृति एकता राष्ट्रीयता और विश्व बंधुत्व में विश्वास आदि जैसे गुणों का समावेश विश्वविद्यालय के छात्र छात्रों में जरूर होना चाहिए।
- विश्वविद्यालय शिक्षा में स्तर सुधार :- विश्वविद्यालय में जो भर्ती हो रहे है उससे पहले छात्रों को 12 वर्ष की शिक्षा दी जाए, जबकि जो विद्यार्थी विश्वविद्यालय में प्रवेश ले रहे हैं उनकी आयु 18 वर्ष से कम ना हो, पुस्तकालय साथी प्रयोगशालाएं ठीक प्रकार से सुसज्जित हो पुस्तकालय में ओपन सेल पद्धति जरूर होनी चाहिए, प्राइवेट विद्यार्थियों को प्रोत्साहित किया जाए तथा विश्वविद्यालय शिक्षा के विकास के लिए एक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के गठन की भी सिफारिश होनी चाहिए।
- डिग्री का सरकारी नौकरी से अलग होना:- सरकारी नौकरियों के लिए जो विश्वविद्यालय की डिग्री हैं उसकी आवश्यकता नहीं होनी चाहिए, जबकि सरकारी नौकरी के लिए स्वतंत्र भर्ती परीक्षा कराई जानी चाहिए।
- पढ़ाई के वर्ष :- प्रथम स्नातक परीक्षा का पाठ्यक्रम 3 वर्ष का होना चाहिए अर्थात जो भी छात्र-छात्राएं 12वीं की परीक्षा पास करने के बाद विश्वविद्यालय शिक्षा में प्रवेश लेंगे उनका पाठयक्रम 3 वर्ष का होगा, जिसको स्नातक के नाम से जाना जाएगा।
- अध्यापक:- विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग ने जो विश्वविद्यालय में अध्यापक है प्रोफेसर हैं उनके वेतनमान और सेवा नियमों को उदार बनाने पर भी बल दिया है, जिससे उत्कृष्ट विद्यार्थी शासन और अन्य क्षेत्रों के तुल्य में विश्वविद्यालय शिक्षा की ओर आकर्षित हो सके साथ ही साथ कम से कम एक तिहाई पद रीडरों, प्रोफेसर के हो ताकि पदोन्नति के समुचित अवसर मिल सकें।
- व्यावसायिक शिक्षा :- विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग ने तीन नए व्यवसाय की शिक्षा पर विशेष बल दिया है जिसमें सार्वजनिक प्रबंध व्यावसायिक प्रबंधन और श्रमिक प्रबंध कारखाने के संबंध में है।
- धार्मिक शिक्षा:- विश्वविद्यालय आयोग ने धार्मिक शिक्षा देने पर बल दिया था। प्रतिदिन का कार्य सामूहिक ध्यान के बाद आरंभ होना चाहिए, स्नातक स्तर पर पाठ्यक्रम के प्रथम वर्ष में महात्मा बुद्ध और कन्फ्यूसियस से लेकर गुरु नानक महात्मा गांधी तथा धार्मिक विचारको के जीवन चरित्र पढ़ाए जाने चाहिए, द्वितीय वर्ष में संसार की महान धार्मिक पुस्तकों से सर्व उपदेश उदाहरण का अध्ययन होना चाहिए,जबकि तृतीय वर्ष में धर्म का दर्शन होना चाहिए।
- शिक्षा का माध्यम:- अंग्रेजी को विश्वविद्यालय शिक्षा का माध्यम न रखकर शिक्षा का माध्यम क्षेत्रीय भाषा के साथ राष्ट्रीय भाषा होना चाहिए, राष्ट्रीय भाषा में सभी स्रोतों से शब्द लेकर उसे समृद्ध किया जाना चाहिए, अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक और टेक्निकल शब्दावली को स्वीकार किया जाना चाहिए।
- प्रवेश तथा परीक्षा पद्धति:- विश्वविद्यालय में प्रवेश का आधार केवल योग्यता ही होना चाहिए, जबकि वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं पर शोध कार्य किया जाना चाहिए और विश्वविद्यालय के उपयुक्त वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं का निर्माण हो सके ऐसा योगदान होना चाहिए।
- अनुशासन:- विद्यार्थियों को अनुशासित रखने के लिए प्रॉक्टर प्रथम तथा विद्यार्थी संगठन अनिवार्य होना चाहिए, विद्यार्थियों को समुचित देखभाल और पाठांतर क्रियाओं का यतिष्ठ प्रबंध होना चाहिए जिससे उनकी शक्ति रचनात्मक दिशा में प्रवाहित हो।
दोस्तों यहाँ पर आपने विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग 1948-49 (University education commission 1948-49) विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग की सिफारिशें पढ़ी आशा करता हुँ आपको यह लेख अच्छा लगा होगा।
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