मध्यकालीन शिक्षा के दोष Madhyakalin Shiksha ke dosh

मध्यकालीन शिक्षा के दोष Madhyakalin Shiksha ke dosh 

हैलो नमस्कार दोस्तों आपका बहुत - बहुत स्वागत है इस लेख मध्यकालीन शिक्षा के दोष (madhyakalin Shiksha ke dosh) में। 

दोस्तों इस लेख में आप जान पाएंगे की मुस्लिम शिक्षा के दोष क्या है? किस प्रकार से यह दोषपूर्ण बनी इस बारे में बताया जायेगा तो आइये शुरू करते है, यह लेख मध्यकालीन शिक्षा के दोष :- 

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मध्यकालीन शिक्षा के दोष

मध्यकालीन शिक्षा के दोष Madhyakalin Shiksha ke dosh 

मध्यकालीन अर्थात मुस्लिम शिक्षा के प्रमुख दोष निम्न प्रकार से हैं:-

  1. अस्थाई विद्यालय :- मध्यकालीन शिक्षा का सबसे बड़ा दोष माना जाता है, कि उसे समय जो शिक्षण संस्थाएं प्रचलित थी वह स्थाई नहीं थी, क्योंकि उस समय अधिकतर मकतब और मदरसा ही चलाए जाते थे और इन मकतब और मदरसा को समय पर आर्थिक सहायता प्राप्त नहीं होती थी, इसलिए यह बंद भी हो जाया करते थे। मुस्लिम शिक्षा केंद्र जैसे, कि मकतब और मदरसा उस समय धानी और अमीर लोगों के ऊपर निर्भर किया करते थे, कियोकि शिक्षण विभाग जैसी कोई व्यवस्था नहीं थी, जो शिक्षा के लिए पर्याप्त कदम उठा सके। इसलिए अस्थाई विद्यालय होने के कारण बच्चों को ठीक प्रकार से शिक्षा ग्रहण करने का मौका नहीं मिल पाता था।
  2. लौकिक पक्ष पर अधिक बल :- मुस्लिम काल में अर्थात मध्य काल में धार्मिक शिक्षा प्रमुख मानी जाती थी अर्थात धार्मिक शिक्षा को अधिक महत्व दिया जाता था और इस धर्म पर लोक संपदा पर अधिक बल दिया जाता था, इसीलिए मुस्लिम शिक्षा में व्यापक सांसारिकता का समावेश होता चला गया और आध्यामिकता के पक्ष में कमी आती चली गई। इस्लामी शिक्षा का उस समय उद्देश्य भौतिक सुख के साथ ही ऐश्वर्य प्राप्त करना रह गया था, इसीलिए विद्यार्थी राज्य में मान सम्मान पद नौकरी पाने की इच्छा से ही विद्या ग्रहण करते थे और वह  छात्र जीवन के दर्शन की उस गहराई तक पहुंचने से वंचित रह जाते थे, जो प्राचीन भारतीय संस्कृति की एक प्रमुख विशेषता हुआ करती थी।
  3. अध्यापन में कठिनाई:- उस समय मकतब और मदरसा में प्रमुख रूप से अरबी और फारसी भाषा में शिक्षा प्रदान की जाती थी, जो विशेष प्रकार से विदेशी भाषाएँ मानी जाती हैं। अतः विदेशी भाषा के कारण भारत के मुसलमान को इसको पढ़ना समझना लिखना आदि में कठिनता का अनुभव होता था। इसलिए वह ठीक प्रकार से अध्ययन और अध्यापन कार्य नहीं कर पाते थे। कुछ बच्चे विद्यालय में प्रवेश तो ले लेते थे, किंतु विषय वस्तु की कठिनता आदि को देखकर वह बीच से ही अपना अध्ययन कार्य छोड़ देते थे इस प्रकार से यह भी एक प्रमुख दोष मुस्लिम शिक्षा का हुआ करता था।
  4. दंडात्मक अनुशासन पर बल :- मध्यकालीन शिक्षा पद्धति के अंतर्गत अनुशासन व्यवस्था बहुत ही कड़ी थी। उस समय अनुशासन भंग करने पर शारीरिक दंड बड़ी ही कठोरता से दिया जाता था। विद्यार्थियों को बेंत घुसो तमाचा डंडे आदि से पीटा जाता था और कभी-कभी तो उनको गठरी बनाकर खूंटी से भी टांग दिया जाता था। मुर्गा बनाना दंड बैठक लगवाना आदि कई सजा देने के कानून वहां पर प्रचलित थे, इसलिए इसका परिणाम यह हुआ की बहुत से विद्यार्थी मार के डर से पढ़ना ही भूल गए और उसमें रुचि रखना ही भूल गए।
  5. छात्रों में विलासिता का भाव :- उस समय के छात्रों में विलासता का भाव मौजूद था। बात करें प्राचीन शिक्षा की तो प्राचीन शिक्षा आश्रमों में दी जाती थी, जहां पर पवित्रता तथा गुरु और शिष्य का संबंध मधुर और मजबूत होता था, यहाँ पर ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ता था तथा बहुत सी चीजों की आश्रम में प्रवेश की मनाही थी, लेकिन मुस्लिम काल में ऐसा नहीं हुआ करता था। यहाँ पर छात्र अपने छात्रावास में रहते थे और रहकर सभी प्रकार की चीजों का प्रयोग करने के लिए स्वतंत्र हुआ करते थे, जबकि यहां पर देह सुख इंद्रिय सुख जैसी चीज प्राप्त हो जाती थी, जिससे उनका जीवन त्यागी की जगह बिलासी और भोगी बन गया।
  6. स्त्री शिक्षा की अपेक्षा :- मुस्लिम परिवारों में पर्दा प्रथा अधिक प्रचलित थी, जबकि बहुत सी स्त्रियों को शिक्षा प्राप्त करने तथा घर से बाहर जाने तक के अधिकार प्राप्त नहीं थे। केवल धनी परिवार की ही औरतें अपने घर पर मौलवी यह शिक्षक का प्रबंध कर लिया करती थी, जिससे उन्हें शिक्षा प्राप्त हो जाती थी। नारी शिक्षा के इस अभाव का कारण सबसे पहले वहाँ का विचार थे, उस समय ऐसी परिस्थितियों थी जिसमें नारी शिक्षा की उन्नति कठिन थी, किंतु बहुत सी नारियां मस्जिदों के पास में लगे मदरसों से आदि से शिक्षित लड़कों से शिक्षा प्राप्त कर लेती थी।

यहाँ पर मध्यकालीन शिक्षा के दोष (Madhyakalin Shiksha ke dosh) माध्यकालीन मुस्लिम शिक्षा के दोष समझाये गए है, आशा करता हूँ, आपको यह लेख अच्छा लगा होगा। 

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