हरिवंश राय बच्चन का जीवन परिचय class 12 Biography of Harivansh rai Bachchan
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हरिवंश राय बच्चन की जीवन शैली Harivansh rai Bachchan ki jivan shaili
हरिवंश राय बच्चन को हिंदी साहित्य में कौन नहीं जानता है कियोकि हरिवंश राय बच्चन बहुत ही विख्यात नाम हो चुका है, जो बच्चन खानदान से जुड़ा हुआ है, क्योंकि बच्चन खानदान में ऐसे महान लोगों ने जन्म लिया है जिनकी चर्चा संपूर्ण देश में होती है।
हरिवंश राय बच्चन इस सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के पिता तथा हिंदी साहित्य के छायावादी युग के एक अस्थाई कवि के रूप में जाने जाते हैं, जिन्होंने हिंदी साहित्य को भावनाओं से भरी हुई रचनाएं प्रदान की है। हरिवंश राय बच्चन की कविताओं में मानसिक भावना की सहज और स्वाभाविक अभिव्यक्ति पाई जाती है।
उनकी रचनाओं में बड़ी ही सहजता सरलता और स्वाभाविकता का चित्र दिखाई देता है. नरोत्तम जी ने स्वयं कहा है, कि जीवन की मौलिक भावनाओं का व्यक्तिगत रूप में प्रबल संवेदन करते हुए उनके अनुरूप प्रकृति अथवा जीवन के सरल और व्यापक तथ्यों का समाधीकरण करना बच्चन जी की काव्य चेतना की मूल विशेषता थी।
हरिवंश राय बच्चन का साहित्यिक परिचय Harivansh rai Bachchan ka sahityik parichay
हरिवंश राय बच्चन कायस्थ समाज से संबंधित थे और उनका जन्म 1907 में 27 नवंबर को हुआ था। हरिवंश राय बच्चन के पिता का नाम प्रताप नारायण मिश्र था और उनकी माता जी का नाम सरस्वती देवी था।
हरिवंश राय बच्चन का विवाह 19 वर्ष की अवस्था में श्यामा बच्चन से हुआ था, किंतु श्यामा बच्चन की मृत्यु किसी कारणवश हो गई तो उनका दूसरा विवाह पंजाबन तेजी सूरी से हुआ जिससे उनको एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जिसको सब लोग अमिताभ बच्चन के नाम से जानते है। हरिवंश राय बच्चन कायस्थ थे और उनको बच्चन नाम उनके परिवार में उनकी बाल्यावस्था से मिल गया था तब से ही उनके नाम के पीछे बच्चन लगा आ रहा है।
हरिवंश राय बच्चन के जीवन पर उनके माता-पिता का गहरा प्रभाव पड़ा और वह अपने माता-पिता की धार्मिक प्रवृत्तियां दयालुता परोपकार प्रेम आदि सीख गए थे। अगर शिक्षा की बात करें, तो हरिवंश राय बच्चन जी की प्रारंभिक शिक्षा कायस्थ समाज की पाठशाला से ही शुरू हुई थी, इसके पश्चात उच्च शिक्षा के लिए वह वाराणसी गए और प्रयागराज में भी उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की।
प्रयागराज विश्वविद्यालय से उन्होंने एम ए अंग्रेजी विषय में किया और कैंब्रिज विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि अंग्रेजी साहित्य में प्राप्त की। हरिवंश राय बच्चन ने अपनी सेवाएँ प्रोफेसर के पद पर प्रयाग विश्वविद्यालय में कई वर्षों तक और आकाशवाणी कार्यक्रम से भी वह हमेशा जुड़े रहे। हरिवंश राय बच्चन को विदेश मंत्रालय में हिंदी विशेषज्ञ होने का मौका 1955 में मिला और इसके पश्चात वह दिल्ली चले गए तथा 1966 में राज्यसभा के सदस्य मनोनीत किए गए।
हरिवंश राय बच्चन बहुत ही सहर्षी और युवावस्था में एक आंदोलनकारी पुरुष थे कियोकि उन्होंने विभिन्न क्रांतिकारी आंदोलन में भी भाग लिया। ऐसे महान नायक रचनाकार लेखक की मृत्यु 18 जनवरी 2003 में किसी बीमारी के कारण मुंबई में हो गई।
हरिवंश राय बच्चन की प्रमुख रचनाएँ Composition of Harivansh rai Bachchan
हरिवंश राय बच्चन ने विभिन्न पदों पर रहते हुए साहित्य से लगाव नहीं छोड़ा, इसलिए उन्होंने हिंदी साहित्य को विभिन्न अमूल्य रचनाएं प्रदान की हैं, जिनमें सबसे पहली रचना का नाम तेरा हार था। यह रचना 1932 में प्रकाशित हुई थी, इसके अलावा कुछ अन्य रचनाएँ निम्न प्रकार से हैं:-
- मधुशाला, मधुबाला, मधुकलश हरिवंश राय बच्चन की सबसे प्रमुख रचनाएँ मधुशाला मधुबाला और मधुकलश हैं, जो एक के बाद एक लगातार प्रकाशित हुई थी और इन रचनाओं में प्यार शक की झलक देखने को मिल जाती है। हरिवंश राय बच्चन की यह रचनाएँ किसी भी दुख आदि को भुलाने के लिए महत्वपूर्ण साबित होती हैं।
- निशा निमंत्रण तथा एकांत संगीत:- हरिवंश राय बच्चन की निशा निमंत्रण और एकांत संगीत हृदय की पीड़ा को व्यक्त करती हैं, और बताती है, कि किस प्रकार से कवि के हृदय में जो पीड़ा होती है, वह उस पीड़ा को अपने रचनाओं के माध्यम से व्यक्त करने की कोशिश करता है।
- सतरंगिणी और मिलयामिनी :- हरिवंश राय बच्चन की यह रचनाएँ उत्साह से भरी हुई हैं इसमें सबसे अधिक ओज गुण का प्रयोग किया गया है।
इसके अलावा हरिवंश राय बच्चन की रचनाओं में प्राण पत्र का आकुल अंतर बुद्ध का नाच घर आरती अंगारे जैसी रचनाएं बहुत ही महत्वपूर्ण है जिसमें कई गीत आत्मकथाएं भी हैं।
हरिवंश राय बच्चन की भाषा शैली Bhasha shaili Harivansh rai Bachchan
हरिवंश राय बच्चन छायावाद के एक बहुत ही जागरूक और ऊर्जावान लेखक माने जाते हैं, उन्होंने अपनी रचनाओं में सहज सरल श्रृंगारपरक भाषा शैली का प्रयोग किया है। बच्चन जी की रचनाएं बड़ी ही सरल भाषा में रचित हैं, किंतु उनकी रचनाओं में सबसे अधिक वेदना पीड़ा दायक कष्टों की अभिव्यक्ति हुई है।
उन्होंने अपनी काव्य भाषा के माध्यम से हृदय की वेदना का चित्रण किया हुआ है। वैसे बच्चन जी की भाषा शुद्ध खड़ी बोली है, किंतु कहीं-कहीं पर तत्सम और तद्भव शब्दों का भी मिला-जुला प्रयोग देखने को मिल जाता है, जबकि कुछ उर्दू फारसी अंग्रेजी भाषा के शब्द भी उनकी काव्य भाषा में दिखाई देते हैं। हरिवंश राय बच्चन ने अपनी रचनाओं के अंतर्गत मुक्तक शैली का प्रयोग किया है सरलता सहजता स्वाभाविकता संगीतमकता आदि गुण इसमें देखे जा सकते हैं।
हरिवंश राय बच्चन का साहित्य में योगदान Harivansh rai Bachchan ka sahitya mai yogdan
हरिवंश राय बच्चन छायावाद के अंत के प्रमुख कवियों में से एक महान कवि हैं और उन्होंने अपने काव्य में श्रृंगार रस के दोनों पक्षों को महत्वपूर्ण स्थान दिया है। उन्होंने हिंदी साहित्य को मधुशाला मधुकलश सतरंगिणी जैसी रचनाएं प्रदान की हैं, जो बहुत ही अमूल्य स्थान हिंदी साहित्य में रखती हैं तथा हर एक व्यक्ति उनकी प्रशंसा करते हुए नहीं थकता है, क्योंकि हरिवंश राय बच्चन की ये रचनाएँ और कष्ट और वेदना से भरी हुई होती हैं, जो हृदय को स्पर्श कर जाती हैं।
उन्होंने हिंदी साहित्य में अपना बहुत ही उल्लेखनीय योगदान देते हुए सरलता पूर्वक भाषा में रचनाएं लिखी है, ताकि उनकी रचनाएं हर एक व्यक्ति को आसानी से समझ आ सके। उन्होंने हिंदी साहित्य में गीतात्मक शैली को एक नवीन दिशा प्रदान की है, जिसमें सफलता और संगीतमकता के काव्य के प्रमुख विशेषताएँ दिखाई देती हैं।
हरिवंश राय बच्चन को सम्मान Award to Harivansh rai Bachchan
हिंदी के महान कवि हरिवंश राय बच्चन को उनकी अमूल्य रचनाओं के कारण विभिन्न पुरस्कारों से पुरुस्कृत किया गया है। इनमें से सबसे पहले उनकी कृति उनकी महत्वपूर्ण रचना दो चट्टानों के लिए 1968 में उन्हें हिंदी कविता के साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जबकि उनकी अन्य प्रमुख रचनाओं के कारण 1968 में उन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार और एफ्रो एशियाई सम्मेलन के कमल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। हरिवंश राय बच्चन को बिरला फाउंडेशन के द्वारा भी उनकी आत्मकथा के लिए सरस्वती सम्मान से प्रस्तुत किया गया, जबकि भारत सरकार ने भी उनके हिंदी साहित्य में अमूल्य योगदान के लिए 1976 में पद्म भूषण से पुरुस्कृत किया था।
हरिवंश राय बच्चन का साहित्य में स्थान Harivansh rai Bachchan ka sahitya mai sthan
हरिवंश राय बच्चन हिंदी साहित्य के एक बहुत ही महत्वपूर्ण कवि हैं। उन्होंने मधुकलश जैसी रचनाएं हिंदी साहित्य को प्रदान की हैं, जिसमें श्रृंगार और उत्साह का महत्वपूर्ण सामंजस्य से देखने को मिलता है, ऐसे महान कलाकार को हिंदी साहित्य में हमेशा ही आदरणीय स्थान प्राप्त रहेगा।
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