पठन कौशल के प्रकार Pathan kaushal ke prakar

पठन कौशल के प्रकार  Pathan kaushal ke prakar 

हैलो नमस्कार दोस्तों आपका बहुत-बहुत स्वागत है, आज के हमारे इस लेख पठन कौशल के प्रकार अर्थ और महत्व (Types of reading skills meaning and importence) में।

दोस्तों इस लेख के द्वारा आज आप पठन कौशल के बारे में जानेंगे, कि पठन कौशल क्या है? इसका अर्थ क्या है? इसके प्रकार कितने हैं? और महत्व क्या है? तो आइए दोस्तों पढ़ते हैं और बढ़ते हैं इस लेख में पठन कौशल के प्रकार और महत्व:-

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पठन कौशल के प्रकार

पठन कौशल का अर्थ Meaning of Reading Skill 

अंग्रेजी भाषा में पठन और वाचन को रीडिंग (Reading) कहा जाता है, किन्तु हिंदी भाषा में पठन और वाचन का अर्थ भिन्न - भिन्न होता है।

हिंदी भाषा में पठन का अर्थ होता है, जोर से पढ़ना, धीरे-धीरे पढ़ना या फिर मौन होकर पढ़ना जिसका मुख्य उद्देश्य होता है, कि जो पाठ्यवस्तु पढ़ी जा रही है, वह पढ़ने वाला समझ सके, किंतु वाचन का अर्थ हिंदी भाषा में जोर जोर से पढ़ने से लिया जाता है, जिसका आनंद श्रोता के साथ वक्ता ले सकें।

इसीलिए हम कह सकते हैं, कि पठन के अंतर्गत हम स्वसर पठन और वाचन दोनों प्रकारों को ले सकते हैं। एक प्रकार से कहा जा सकता है, कि लिखित भाषा में अभिव्यक्त विचारों को पढ़ने की प्रिक्रिया को पढ़ना या पठन कहते है। विचारकों ने और भाषाविदों ने पढ़ने अर्थात पठन के सन्दर्भ में निम्न मत प्रस्तुत किए है:-

  1. लिखे हुए से अर्थ गढना ही पढ़ना है अर्थात भाव को समझना ही पठन कहलाता है।
  2. पढ़ने का अर्थ है, लिखे हुए से धारणाओं को ग्रहण करना और साथ ही विचारों को आपस में जोड़ पाना और उन्हें स्मृति में रखना।
  3. पढ़ना केवल वर्णमाला की पहचान शब्द तथा वाक्य को बोल पाना नहीं होता है, वरन इसके आगे बहुत कुछ और भी हैं अर्थात लिखे हुए अर्थ को समझ कर अपना दृष्टिकोण बताना या फिर अपनी स्वयं की समझ विकसित करना ही पठन होता है।
  4. शब्द बोलना पढ़ना नहीं होता है, पढ़ने का अर्थ होता है, लिखें हुए के साथ संवाद करना अपने अनुभवों और समझ के सांचे में लिखे हुए को ढालना।
  5. पढ़ना एक एकाकी प्रक्रिया नहीं होती है, इसमें अक्षरों की आकृतियों और उनसे जुड़ी बात विन्यास शब्दों और वाक्यों के अर्थ और अनुमान लगाने का कौशल सम्मिलित होता है। 

पठन कौशल के प्रकार Type of Reading Skill 

पठन कौशल को दो प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है:- 

स्वसर पठन Vocal reading

स्वसर का अर्थ होता है, तेजी से या फिर स्वर के साथ पठन करना या पढ़ना। ऐसे ही विभिन्न अवसर होते हैं, जैसे कि व्याख्यान देते समय, वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में, गोष्ठियों में अपनी बात को प्रभावशाली तरीके से कहना और प्रभावशाली तरीके से दूसरों के आगे रखना।

हम पठन वाचन का रूप मानते हैं, और शुद्ध प्रभावपूर्ण वाचन श्रोताओं पर विशिष्ट प्रभाव डालता है, यही नहीं वक्ता का अपना व्यक्तित्व भी इसी के द्वारा निखरता है, इसीलिए किसी भी अवसर पर बातचीत करते समय जिसका वाचन स्पष्ट और अच्छा होता है,

वह अन्य लोगों की अपेक्षा दूसरों को शीघ्र ही प्रभावित करने की क्षमता रखता है, यदि कहीं कोई छात्र जाए और वह श्रोताओं के मध्य बोले तो वह शुद्ध प्रभावपूर्ण नहीं बोल सकता है और उसका उपहास बनने का खतरा रहता है। ऐसी स्थिति में

वह अपनी हास्यास्पद स्थिति को देखकर वह अपने वचन को मन ही मन आवश्यक कोसेगा, इसीलिए किसी भी प्रकार का गोष्ठी सम्मेलन का आयोजन हो सामाजिक व पारिवारिक किसी भी प्रकार का उत्सव हो या फिर किसी भी प्रकार का धार्मिक कार्यक्रम हो वहाँ पर ऐसा व्यक्ति जिसका वाचन अच्छा होता है,

जाने का साहस करता है और जिसका वाचन अच्छा नहीं होता वह कदापि ऐसे स्थानों पर बोलने का साहस नहीं कर पाता है, इसीलिए कह सकते हैं, कि इस वाचन के द्वारा व्यक्ति में आत्मविश्वास जागृत होता है, और वह भाषा प्रयोग की क्षमता अपने आप में विकसित कर लेता है, उसका संकोच समाप्त हो जाता है और उसमें नेतृत्व गुणों का विकास होने लगता है। 

मौन पठन Silent Reading 

लिखी हुई भाषा को बिना उच्चरण किए हुए शांतिपूर्वक पढ़ने और पढ़कर उसका अर्थ ग्रहण करने की क्रिया को मौन पठन के रूप में जाना जाता है। इस पठन का अभ्यास कर विद्यार्थी अपने आप में आत्मविश्वास जागृत करता है। पठन के इस अभ्यास के द्वारा अध्यापक विद्यार्थी के जीवन में एक स्थाई महत्व की बात

जोड़ता जाता है, क्योंकि यह पठन विशेषकर मौन पठान आजीवन उसका साथ देता है, इसीलिए पठन की सर्वोत्कृष्ट सफलता मौन पठान में निहित होती है, क्योंकि मौन पाठ हमारे लिए अधिक व्यवहारिक शुगम और उपयोगी होता है, जिसमें किसी भी प्रकार की कोई भी समस्या नहीं होती है।

पठन का महत्त्व Importence of Reading 

व्यक्ति के जीवन में पढ़ने का अत्यधिक महत्व होता है, क्योंकि मनुष्य में ज्ञान अर्जन की जिज्ञासा हमेशा ही बनी रहती है और वह ज्ञान वृद्धि के लिए प्रयास भी करता रहता है, इसीलिए ज्ञान अर्जन और ज्ञान वृद्धि के तीन प्रमुख साधन होते हैं, जिनमें प्रत्यक्ष निरीक्षण विचार विनिमय, दूसरों से शिक्षण ग्रहण करना के साथ ही स्वअध्याय और पठन महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

ज्ञान प्राप्त किसी भी प्रत्यक्ष निरीक्षण के द्वारा करते हैं, तो वह ज्ञान हमारे जीवन में स्थाई ज्ञान होता है, किंतु इस विस्तृत विश्व में ज्ञान का सागर इतना बड़ा है, कि मनुष्य अपने छोटे से जीवन में ज्ञान का छोटा सा अंश भी प्राप्त नहीं कर पाता है। विचार-विमर्श करके दूसरे लोगों से अर्जित ज्ञान प्राप्त करना भी हमें अधिक लाभप्रद होता है।विद्यार्थी को यह सुविधा विद्यालय छोड़ने के पश्चात नहीं मिलती उनके लिए एक ही साधन रह जाता है,

कि वह भूतपूर्व तथा वर्तमान विद्वानों की कृतियों का स्वयं अध्ययन करें और ज्ञान अर्जन करें, जबकि स्वयं अध्ययन में पठन सबसे प्रमुख माना जाता है, इसीलिए पठन को हमारे ज्ञान अर्जन की कुंजी भी कहते हैं। शिक्षा पर प्राचीन संस्कृति के संरक्षण का उत्तरदायित्व रहता है, इस दृष्टि से पठन की महत्वता और भी बढ़ जाती है।

छात्र को राष्ट्र के लिए उत्तम नागरिक बनना भी शिक्षा के पठन द्वारा ही संभव होता है। सभी प्रकार की घटनाओं विचारधाराओं आदि के बारे में परिचय प्राप्त करना और विश्व से संपर्क जोड़ना पठन का सबसे महत्वपूर्ण भाग है। पठन के द्वारा ही हम अपने आसपास होने वाली सभी प्रकार की घटनाओं जीवन से संबंधित घटनाओं मौसम से संबंधित घटनाओं की जानकारी प्राप्त करते हैं। आप यदि कहीं पर जा रहे हैं, या कहीं पर बैठे हैं,

तो आप एक पुस्तक उठाकर पठन का आनंद ले सकते हैं। आप हमेशा ही विद्यालय समुदाय समाज राज्य आदि से जुड़े हुए हैं और यह सभी आपको पठन के लिए भरपूर अवसर प्रदान करते हैं। जीवन चरित्र, इतिहास, काव्य, कहानियाँ,  उपन्यास, नाटक आदि सभी विभिन्न प्रकार की पुस्तकों में पत्रिकाओं में और न्यूज़पेपर में प्रकाशित होते रहते हैं।

आप घर पर बैठकर भी इन सभी का अध्ययन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के द्वारा भी कर सकते हैं, जबकि पुस्तकालय और वाचनायों की भी व्यवस्था लोगों के लिए की गई है, इसीलिए श्रीधरनाथ मुखर्जी कहते हैं, कि पठान एक कला है और यह ज्ञान अर्जन की कुंजी मानी जाती है।

दोस्तों आपने यहाँ पर पठन कौशल के प्रकार अर्थ और महत्व (Types of reading skills) के बारे में पढ़ा, आशा करता हुँ, आपको यह लेख अच्छा लगा होगा।

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