पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धांत Principles of curriculum development

पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धांत Principles of curriculum development

हैलो नमस्कार दोस्तों आपका बहुत - बहुत स्वागत है, इस लेख पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धांत (Principles of curriculum development) में। 

दोस्तों यहाँ पर आप पाठ्यक्रम निर्माण के वे सभी सिद्धांत समझेंगे जो परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। तो आइये दोस्तों शुरू करते है यह लेख पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धांत:- 

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पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धांत


पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धांत Principles of curriculum development 

यहाँ पर पाठयक्रम निर्माण के कुछ महत्वपूर्ण सिद्धांत समझाये गए है :- 

  1. जीवन से संबंधित सिद्धांत :- पाठ्यक्रम निर्माण का पहला सिद्धांत होता है जीवन से संबंधित सिद्धांत अर्थात यह सिद्धांत बताता है, कि किसी भी पाठ्यक्रम के अंतर्गत उन समस्त विशेष सामग्री का उपयोग या समावेश अवश्य होना चाहिए जो बालकों के वर्तमान जीवन से किसी न किसी प्रकार से संबंधित आवश्यक हो, जिससे बालक अपने जीवन की समस्याओं को समझ सके और उसका समाधान भी खोज सकें। 
  2. संस्कृति और सभ्यता का सिद्धांत :- पाठ्यक्रम निर्माण के द्वितीय सिद्धांत जिसे संस्कृति और सभ्यता का सिद्धांत कहा जाता है, के अंतर्गत पाठ्यक्रम में संस्कृति और सभ्यता के विषयों का समावेश होना चाहिए और संस्कृति सभ्यता का इस प्रकार से समावेश होना चाहिए, कि बालक तथा बालिकाएं अपनी संस्कृति और सभ्यता को समझ सकें तथा उनको अक्षुन्य बनाए रखने का प्रयास करें।
  3. अग्रदर्शिता का सिद्धांत:- पाठ्यक्रम के अंतर्गत ऐसे क्रियाकलापों को ऐसे विषयों को और ऐसी पाठय वस्तुओं को महत्व दिया जाना चाहिए, जिसके द्वारा बालक जीवन में आगे आने वाली परिस्थितियों को समझ सके और उनका समाधान कर सके तथा अपने जीवन को जीवनयापन करने के अनुकूल बना सके।
  4. रचनात्मक शक्तियों का सिद्धांत:- इस सिद्धांत के अनुसार पाठ्यक्रम के अंतर्गत इस प्रकार से पाठयवस्तु, विषय वस्तु और क्रियाकलापों का समावेश किया जाना चाहिए, कि बालक में जो जन्मजात निहित सृजनात्मक और रचनात्मक शक्तियाँ होती हैं, उनका विकास हो सके और बालक तथा बालिकाएँ उन शक्तियों का समुचित प्रयोग करने में सक्षम बना सके। 
  5. व्यक्तिगत विभिन्नताओं का सिद्धांत :- यह सिद्धांत बताता है, कि पाठ्यक्रम का निर्माण इस प्रकार से किया जाना चाहिए, कि पाठ्यक्रम ज्यादा कठोर भी ना हो और पाठ्यक्रम लचीला भी ना हो पाठ्यक्रम का निर्माण इस प्रकार से करना चाहिए, कि वह बालक की रुचियों उनकी प्रवृत्तियों उनकी आवश्यकताओं और क्षमताओं के अनुसार परिवर्तनशील हो।
  6. खेल और कार्य का सिद्धांत :- यह सत्य है, कि खेल बालक की एक जन्मजात प्रवृत्ति होती है, इसीलिए पाठ्यक्रम के निर्माण में बालको से जो भी कार्य कराने हो या उनको जो कुछ भी सिखाना हो उसकी योजना बनानी हो तो उसमें बालकों को अपनी खेल प्रवृत्ति को अभिव्यक्ति करने का अवसर दिया जाना चाहिए इससे बालक जो भी कार्य करेंगे उसमें उन्हें सुख का अनुभव होगा और आनंदित होंगे।
  7. जीवन क्रियाओ का सिद्धांत:- बालकों के व्यक्तिगत विभिन्न पहलुओं जैसे कि शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और नैतिक पक्ष के विकास के लिए पाठ्यक्रम में जीवन से संबंधित विभिन्न क्रियाओ का समावेश करना चाहिए, ताकि बालक के जो शारीरिक मानसिक सामाजिक और नैतिक पक्ष हैं यह मजबूत बना सकें इनका विकास हो सके।
  8. सहसंबंध का सिद्धांत :- पाठ्यक्रम में जो भी विषय निर्धारित किए गए हैं, उनमें किसी न किसी प्रकार का संबंध अवश्य होना चाहिए, जिससे बालक जो भी ज्ञान प्राप्त करें वह परस्पर किसी न किसी प्रकार से संबंधित रहे। इस प्रकार से सहसंबंध सिद्धांत के अनुसार विषयों में परस्पर किसी न किसी प्रकार का संबंध बना रहे तो बालकों को सीखाने में आसानी होती है।
  9. विकास की सतत प्रक्रिया का सिद्धांत:- इस सिद्धांत के अनुसार बताया गया है, कि पाठ्यक्रम स्थिर न होकर परिवर्तन की अणुव्रत प्रक्रिया में विकसित होना चाहिए ताकि भविष्य में आवश्यकता के अनुसार पाठ्यक्रम में  विभिन्न परिस्थितियों को देखते हुए उसमें परिवर्तन किया जा सके और उसको अनुकूलित किया जा सके।
  10. स्वस्थ आचरण के आदर्शों का सिद्धांत:- विभिन्न शिक्षाशास्त्रियों के अनुसार कहा गया है, कि पाठ्यक्रम के अंतर्गत ऐसी विषयवस्तु ऐसी विषय सामाग्री और ऐसे क्रियाकलापों को जरूर स्थान दिया जाना चाहिए, जिससे बालक स्वस्थ आचरण के आदर्शों की प्राप्ति कर सके अर्थात वह स्वस्थ स्वच्छ आदि को समझ सके और उसको आत्मार्पित कर सके।
  11. बाल केंद्रीयता का सिद्धांत:- इस सिद्धांत के अनुसार पाठ्यक्रम के अंतर्गत विभिन्न प्रकार की बालक से संबंधित रुचियो आवश्यकता उनकी क्षमता बुद्धि आयु प्रवृत्तियाँ और अभिवृत्तियों को ध्यान में रखकर पाठ्यक्रम का निर्माण होना चाहिए अर्थात केंद्र बिंदु बालक को ही मानकर पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाना चाहिए।
  12. पर्याप्त समय की व्यवस्था का सिद्धांत:- इस सिद्धांत के द्वारा विभिन्न विषयों के प्रकरणों को पूर्ण करने के लिए पाठ्यक्रम में पर्याप्त समय की व्यवस्था होनी चाहिए ताकि जो भी पाठ्यक्रम विषयवस्तु है पाठक सामग्री है उसको निश्चित समय में तथा बिना किसी परेशानी के पूरा किया जा सके।

दोस्तों यहाँ पर आपने पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धांत Principles of curriculum development पढ़े, आशा करता हुँ, आपको यह लेख अच्छा लगा होगा।

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