मोनेरा जगत के लक्षण Characteristics of Monera Kingdom

मोनेरा जगत के लक्षण Characteristics of Monera Kingdom

हैलो नमस्कार दोस्तों आपका बहुत-बहुत स्वागत है, हमारे इस लेख मोनेरा जगत के लक्षण (Characteristics of Monera Kingdom) में। दोस्तों इस लेख के माध्यम से आज आप मोनेरा जगत के पांच लक्षण, मोनेरा जगत के दो लक्षण 

के साथ ही मोनेरा जगत का वर्गीकरण मोनेरा जगत के उदाहरण जान पाएंगे। दोस्तों यह लेख प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहां से कोई भी प्रश्न बाहर नहीं जाता है। तो दोस्तों शुरू करते हैं और पढ़ते हैं आज का यह लेख मोनेरा जगत के लक्षण:- 

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मोनेरा जगत के लक्षण


मोनेरा क्या है What is Monera 

मोनेरा उन सभी प्राणियों का एक जगत है, जो प्रोकैरियोटिक (Prokaryotic) होते हैं अर्थात ऐसे जीवधारी जिनमें एक स्पष्ट केंद्रक (Nucleus) उपस्थित नहीं होता है, उन्हें प्रारंभिक तथा सरलतम जीव माना जाता है। मोनेरा जगत के जीवधारी की संरचना के आधार पर ऐसा प्रतीत होता है, 

कि जीव जगत के सबसे प्राचीनतम जीव मोनेरा जगत के अंतर्गत ही आते हैं। मोनेरा जगत के प्राणी सभी स्थानों पर मिलते हैं चाहे वह मिट्टी हो जल हो वायु हो गर्म जल हो झरने हो हिमखंड हो रेगिस्तान हो हर जगह मोनेरा जगत के जीव जंतुओं का वास होता है। 

मोनेरा जगत के लक्षण Characteristics of Monera Kingdom

  1. मोनेरा जगत का सबसे प्रमुख लक्षण होता है, कि इन जीवधारियों का कोशिकीय संगठन प्रोकैरियोटिक प्रकार का होता है, अर्थात इनमें कोशिका में अनुवांशिक पदार्थ किसी झिल्ली में नहीं रहता है, बल्कि जीव द्रव्य Cytoplasm में बिखरा हुआ होता है, क्योंकि इनमें एक सुविकसित केंद्रक का अभाव होता है।
  2. इन जीवधारी की कोशिका भित्ति Cell wall बहुत ही मजबूत होती है जो पॉलिसैकेराइड और अमीनो अम्ल से मिलकर बनी होती है।
  3. इन जीवधारियों में केंद्रक अनुपस्थित होता है, इसीलिए केंद्रक द्रव तथा केंद्रक के अंग सब जीवद्रव्य में बिखरे हुए अवस्था में मिलते हैं।
  4. मोनेरा जगत के जीव जंतुओं में कुछ प्रमुख अंग जैसे कि माइटोकांड्रिया गॉलजीकाय और रिक्तिका अनुपस्थित होती है।
  5. इस जगत के प्राणी प्रकाश संश्लेषण, रसायन संश्लेषण के साथ ही परपोषी प्रकार का पोषण प्रदर्शित करते हैं।
  6. इस जगत के कुछ सदस्य ऐसे भी होते हैं, जिनमें वायुमंडल की नाइट्रोजन को स्थिरीकरण की क्षमता पाई जाती है। 

मोनेरा जगत का वर्गीकरण Classification of Monera Kingdom

अध्ययन की सुविधा के अनुसार मोनेरा जगत को निम्न भागों में वर्गीकृत किया गया है

  1. जीवाणु (Bacteria) :- जीवाणुओं को प्राचीन काल में वैज्ञानिकों ने पौधों की संज्ञा दी थी, किंतु जीवाणु वास्तव में पौधे नहीं होते हैं, उनकी कोशिका भित्ति का रासायनिक संगठन पौधों की कोशिका के रासायनिक संगठन से बिल्कुल भिन्न होता है, जबकि कुछ जीवाणु प्रकाश संश्लेषण करने में सक्षम तो होते हैं, किंतु उनमें क्लोरोफिल Chlorophyll) की जगह बैक्टीरिया क्लोरोफिल Baceriochlorophyll) उपस्थित होता है।
  2. ऐक्टीनोमाइसिटीज (Actinomycetes) :- यह कवकसम जीवाणु के नाम से जाने जाते हैं, क्योंकि यह वे जीवाणु होते हैं, जिनकी रचना कवक जाल के समान तंतुवत और शाखित देखने को मिलती है। प्रारंभ में इस वर्ग के जीव सदस्यों को कवक माना जाता था, परंतु इनमें प्रोकैरियोटिक कोशिकीय संगठन पाया जाता है और इनको जीवाणु के समान ही माना जाता है। इस समूह का सबसे महत्वपूर्ण वंश स्ट्रिप्टोमाईसिटीज (Streptomycetes) होता है, इस वर्ग के अनेक प्राणियों से विभिन्न प्रकार की प्रतिजैविक एंटीबायोटिक दवाइयाँ प्राप्त होती हैं।
  3. आर्कीबैक्टीरिया (Archaebacteria):- वैज्ञानिकों के मत के अनुसार यह स्पष्ट किए जाने की कोशिश की गई थी, कि आर्कीबैक्टीरिया प्राचीनतम जीवधारियों के प्रतिनिधि होते हैं, क्योंकि इनका नाम भी आर्की अर्थात बैक्टीरिया रखा गया है, इसीलिए इन्हें प्राचीनतम जीवित जीवाश्म के नाम से भी जाना जाता है, जिन परिस्थितियों में यह निवास करते हैं उनके आधार पर आर्कीबैक्टीरिया तीन समूहों में विभाजित किए गए हैं :- मैथेनेजॉन, हैलोफाइल्स, थर्मोएसिडोफाइल्स 
  4. सायनोबैक्टीरिया (Cyanobacteria) :- सायनोबैक्टीरिया उन सभी जीवधारियों का समूह होता है, जो प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को प्रदर्शित करते हैं, इसीलिए इस वर्ग के सभी जंतुओं को पृथ्वी का सफलतम जीवों का समूह कहा जाता है। संरचना के आधार पर इन कोशिकाओं की मूलभूत संरचना शैवालों की अपेक्षा जीवाणुओं से अधिक समान होती है। सायनोबैक्टीरिया को नील हरित शैवाल के नाम से भी जाना जाता है और यह कवक से लेकर साइकस तक अनेक जीवधारी के साथ सहजीवी संबंध प्रदर्शित करते हैं। 

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